इस बितॆ
हुए महीने का लेखा जोखा किया तो
समझ नहीं आय़ा
कि यह बिता हुआ महीना आपकी यादों के सहारे इतनी
जल्दी कैसे गुजर गया
यॅु तो हर पल एक महीने के बराबर होता है
पर लमहो का गणित ना बने तो नासमझ को भी भला कभी
अफसोस होता है
यादें हमारी ही थी लेकिन ख़याल सिर्फ आपका ही
था
तसल्लि सिर्फ इसी बात की थी कि खयालो मे ही सही
पर मै आपको जानता तो था
यॅु मै तो नासमझ ही ठीक था, जानने - पहचानने
मे र्फक नहीं करता था
पर अब मै गणित समझ गया हुं, ख़याल अभी भी आपके
ही है, बस ख्वाब खुद के बुनता हुं